मोरिसदेरा नाम का बीच रंगत में एक अलग ही तरह का बीच है । ये बीच पोर्ट ब्लेयर से डिगलीपुर जाने वाली सडक पर ही है । हाईवे जिसे हाइवे कहना उचित...
मोरिसदेरा नाम का बीच रंगत में एक अलग ही तरह का बीच है । ये बीच पोर्ट ब्लेयर से डिगलीपुर जाने वाली सडक पर ही है । हाईवे जिसे हाइवे कहना उचित नही है पर क्या करें जब ये आधिकारिक रूप से हाईवे है तो कहना ही होगा , से लगा समंदर और उस पर ये बीच ।
वैसे ये बीच नहाने के काम तो नही आता होगा ऐसा मेरा अंदाजा है क्योंकि मै यकीन से इसलिये नही कह सकता कि हम गये थे सुबह सुबह और आटो वाले का कहना था कि अभी यहां पर भीड आनी शुरू होगी और साथ ही अस्थायी दुकाने भी लगनी शुरू हो जायेंगी पर जब हम गये तब तो वहां पर कुछ भी नही था ।
नहाने की स्थिति नही है ये बात मै इसलिये कह रहा हूं क्योंकि यहां इस बीच पर काफी बडे बडे पत्थर हैं । वैसे इस बीच की एक खास बात ये भी है कि यहां पर प्राकृतिक पानी का एक झरना उपर पहाड से आ रहा है और इस इलाके में जहां पर दूर दूर तक पानी पीने के लिये स्वच्छ पानी का मिलना मुश्किल है ऐसे में स्वच्छ ही नही ठंडा और मीठा पानी पीने को मिले तो हाईवे से गुजरने वाला हर शख्स यहां पर रूक ही जाता है और इसी बात को देखते हुए यहां पर पिकनिक स्थल बना दिया गया है ।
इस पिकनिक स्पाट और बीच को भी ईको टूरिज्म की अवधारणा से सजा दिया गया है । वही पेडो की बैंच से लेकर पेडो की जडो के स्टूल और ईको हट बनाकर इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगा दिये हैं । वैसे मेरी समझ में ये बात नही आयी कि जब यहां पर साफ और मीठे पानी की इतनी जरूरत है तो पहाड पर से आने वाला झरना जिसमें से पाइप लाइन तो लगा रखी है पर उसके पानी को समंदर में मिल जाने क्यों दिया जा रहा है ।
क्यों नही उस पानी को रोककर झील बना लेते हैं जिससे पानी की स्टोरेज भी होगी और पर्यटक तो इससे भी ज्यादा आयेंगें ।
खैर कुल मिलाकर अच्छी जगह है ये देखने लायक
यही है मीठे पानी का झरना |
ईको टायलेट |
ईको हट |
ईको डस्टबिन eco dustbin |
beautiful stons at beach |
मोरिसदेरा के बीच पर एक खास और बढिया जगह और भी है । यहां पर एक बडी सी चटटान है समुद्र के किनारे पर ही जिसे थोडी सी कल्पना शीलता के साथ पर्यटको के लिये यादगार जगह बना दिया गया है । इस चटटान तक पहुंचने के लिये लकडी की सीढिया लगा दी गयी हैं । यहां से बीच का सुंदर नजारा दिखता है । अपने फोटो भी बढिया आते हैं ।
यहां से वापस सडक पर आने के बाद हम प्राकृतिक झरने यानि वाटरफाल पर गये । ये लोकेेशन ही इतनी गजब है कि पूछो मत । सामने दूर दूर तक लहराता समंदर है और किनारे पर हाईवे । हाईवे के दूसरी ओर पहाड है और उस पहाड से आता झरना । हालांकि ये झरना कहीं भी बहुत उंचाई से नही गिरता पर इसका मतलब ये नही कि ये सुंदर नही लगता ।
हमने तो आटो वाले से पूछा भी कि इस झरने के उदगम तक जाने के लिये कोई रास्ता भी है या नही तो उसने बताया कि रास्ता नही है बस ऐसे ही पेडो की जडो को पकड पकड कर जाना होगा । हमने इरादा त्याग दिया । यहां के बीच के साफ पानी और उसमें पडे पत्थरो के रंग रूप और डिजाइन को देख कर हम हैरान थे । पता ही नही चला कि यहां पर कितना समय गुजार दिया ।
रंगत में इतनी बढिया जगहे मिलेंगी इसका मुझे पता नही था । ना ही मैने इंटरनेट पर पढा था सिवाय आमकुंज बीच और धनी नाला मैनग्रोव वाक के । आटो में घूमने का काफी फायदा हुआ । आटो ड्राइवर आमतौर पर गाइड का काम तो फ्री में कर देते हैं ।
ये क्या है मै नही जानता आपको पता हो तो बताओ |
यहां एक जगह पहाडो के बुग्याल जैसी थी |
पुराना और नया पुल संगम पर |
पहाड, नदी , सागर , पेड सब हैं यहां |
संगम देखने के बाद हम लोग वापस फिर से रंगत कस्बे की ओर चल दिये । इस बार रास्ते में कई जगह देखनी थी ।रास्ते में जो फोटो में आपको पुल दिखायी दे रहा है यही पंचवटी नाम की जगह है । इसी से आगे संगम है । पहले यहां पर पुराना पुल था जो बेकार होने के बाद अब नया पुल बनाया गया है
सबसे पहले तो हमें आटो वाले ने एक जगह पर रोका और एक बहुत बडा पत्थर दिखाया और बताया कि ये पेड था जो कि हजारो सालो में पत्थर बन गया है । कई जगह से और सारी तरफ से हमने घूमकर देखा । पत्थर में कई जगह पेड की जडो की तरह की आकृति बनी दिखायी दे रही थी । देखने से तो ऐसा ही लगता था कि ये पेड ही रहा होगा बाकी सच क्या है ये तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं । जाट देवता ने तो मना कर दिया कि ये पेड नही था बल्कि पत्थर ही था ।
उसके बाद हम लोग जब रास्ते में जा रहे थे तो हमें एक ट्रैक्टर जैसा उपकरण देखने को मिला । हमने आटो रूकवा लिया और गहनता से इसका निरीक्षण किया । वैसे तो हमें एक दो के अलावा यहां पर ट्रैक्टर देखने को नही मिले पर बाकी सब जगह खेतो में यही दिखा । यहां पर धान की फसल ही मुख्य होती है और पानी से भरे खेत में हमारे यहां भी जब धान बोया जाता है तो ट्रैक्टर के पहियो के बराबर में एक लोहे का पहिया लगा लिया जाता है जो उसके मेन पहियो को ध्ंसने नही देता । पर यहां ये बात अजीब थी कि ये उपकरण काम तो वही कर रहा था पर इसका साइज बहुत छोटा था । इसमें ड्राइवर की सीट ही दिख रही थी मामूली सी और हैंडिल में ही रेस लगी थी ।
पहले तो हमने सोचा कि ये देशी जुगाड है पर बाद में इसके फेस देखने से और उस पर लगी लाइटो से महसूस हुआ कि नही शायद ये कोई कम्पनी का ही प्रोडक्ट है । ये केवल धान बोने में काम आता हो ऐसा नही है क्योंकि
इसके नीचे दो खुरपे भी लगे देखे जो कि जुताई में काम आते हैं तो हो सकता है कि ये खेतो की जुुताई भी करता हो । आगे की लाइट और डिजाइन इसे कम्पनी का ही दिखा रही थी पर किसी कम्पनी का नाम भी नही था ।
इसके बाद हमे आटो वाला यहां के प्रसिद्ध कालिका मंदिर पर ले गया । कालिका मंदिर थोडी उंचाई पर बना है और इसी के पास रंगत का हैलीपैड भी है । मंदिर में भी हमारे सिवाय और पंडित जी के अलावा कोई आदमी नही था । हमने बडे आराम से और तसल्ली से माता रानी की सुंदर मूर्ति के दर्शन किये और मंदिर परिसर को भी घूमा जिसमें काफी फूल वगैरा लगे थे । मंदिर को देखने के बाद हम वापस रंगत कस्बे की ओर चल पडे ।
अब दिमाग में आ रहा था कि अगर हमारा होटल 15 किलोमीटर दूर ना होता तो हम होटल से रंगत और फिर रंगत से डिगलीपुर के दो चक्कर ना लगाते । इसलिये इस होटल को मै मना ही करूंगा रूकने के लिये क्योंकि इसकी लोकेशन बहुत खराब है । हां अगर किसी को रंगत नही घूमना हो और किसी वजह से यहां पर रूक कर डिगलीपुर ही जाना हो तो उसके लिये ये ठीक है ।
ये है वो जुगाड |
जाट देवता संदीप पंवार |
ये है वो पत्थर जिसे कहते हैं कि ये पेड था |
ये है वो पत्थर जिसे कहते हैं कि ये पेड था |
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ये है वो पत्थर जिसे कहते हैं कि ये पेड था |
ये है वो जुगाड |
ये है वो जुगाड |
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