मैजिक वाले ने हमें हमारे होटल टर्टल रिसोर्ट पर उतार दिया । ये सडक पर गेट बना था और उपर छोटी सी पहाडी पर होटल ।...
view from trutle resort , kalipur |
pristine beach resort , kalipur , diglipur |
pristine beach resort , kalipur , diglipur |
कालीपुर बीच । नाम सुनकर इतना अजीब नही लगा था क्योंकि गांव का नाम कालीपुर था पर जब जाकर देखा तो पता चला कि ये तो सच में काला पानी का बीच है और तो और रेत तक भी काला रंग लिये है ।
होटल में सामान रखने के बाद हम सबसे पहले बीच की ओर चल पडे । होटल से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर ही बीच है और यहां तक जाने के लिये किसी से पूछना भी नही पडता । होटल से सीधे हाथ को चले तो सामने ही बोर्ड लगा दिख गया । बोर्ड के पास एक पेड दिखा जो कि अजीब सा था । ऐसा लग रहा था जैसे कि एक पेड के अंदर से दूसरा पेड निकल रहा हो । जाट देवता ने आव देखी ना ताव और खट से पेड पर चढकर पूरा मुआयना कर आये । बाद में जब उतरा नही गया तो छलांग लगानी पडी । वैसे एक बात और भी बतानी है आपको कि आजकल जाट देवता फोटोग्राफी में निपुणता हासिल कर चुके हैं और काफी अंगुलबाजी मतलब ऐंगलबाजी करने लगे हैं । यहां पर बीच में सबने मस्ती तो की ही पर कुछ बेहतरीन फोटो भी खींचे ।
खासतौर पर समुद्र के वापस जाते पानी जो कि कुछ सैंकेड के लिये ही ठहरता है में परछाई का फोटो लेना गजब था ।
समुुद्र में लो टाइड था यानि पानी कम था और सामने की ओर जो द्धीप दिखाई दे रहा था वो ऐसा लग रहा था कि बस हाथ बढाकर छू लो । हमने होटल वाले से पूछा तो उसने बताया था कि छोटी ढूंगी यानि नाव वहां तक जाती हैं या फिर आप तैरना जानते हैं तो तैरकर भी वहां तक जा सकते हैं । पानी की लहरो को देखकर तैरने की हिम्मत करने वाला तो मुझे कोई लग नही रहा था कि वहां तक जाता होगा पर नाव मिलनी भी मुश्किल बतायी । हम वहां बीच पर रहे तब हमें भी कोई नाव वहां पर नही दिखी । सामने समुद्र में जरूर मछुआरे नाव पकड रहे थे पर वो इतने दूर थे कि वहां तक हमारी आवाज भी नही जा सकती थी ।
इस बीच पर भी थोडी दूर तक मृत शैवाल की चटटाने पडी थी जो कि सुनामी का प्रकोप दिखाती हैं । कुछ पाचं सात लोग भी दिखायी दिये जो कि यहां पर पिकनिक मनाने के लिये आये हुए थे । बाद में बात असली पता चली कि डिगलीपुर में बीच नही है । समंदर किनारा है पर बीच नही होने के कारण डिगलीपुर तक के निवासी जब नहाने या पिकनिक का मन होता है तो कालीपुर बीच पर ही आते हैं । इसलिये यहां पर लोग दिख रहे थे । जब हम यहां से घूमकर बाहर सडक पर आये तो दो कारे और मिली जिन्होने मेन रोड पर ही कार की खिडकी खोलकर साउंड सिस्टम पूरी आवाज में बजा रखा था और साथ ही आदमी औरते और बच्चे डांस कर रहे थे । पहले तो हमने सोचा कि ये लोकल कोई प्रोग्राम है पर बाद में कार पर कामर्शियल नम्बर देखा और उसके ड्राइवर से बात हुई तो पता चला कि ये तो डिगलीपुर से पिकनिक मनाने के लिये आये हुए है।
बीच से घूमकर आने के समय तक अंधेरा हो चुका था और खाने का समय भी पर होटल वालो ने आठ बजे का समय रखा था । होटल में हमारे सिवाय कोई नही था ना ही सामने वाले होटल में कोई दिखायी दिया ।
हम आठ बजे से थोडा पहले ही खाने के कमरे में पहुंच गये थे । वहां पर बहुत ही सुंदर सजा कमरा था जिसमें करीने से हर चीज लगाई गयी थी । रसोई में थोडा शोर सा सुनकर मै देखने चला गया तो देखा कि उन्होने एक बडा सा केकडा पकडा हुआ था । इतना बडा केकडा मैने और मेरे साथियो ने भी पहली बार ही देखा था । मैने चिलका लेक पर केकडे देखे थे पर ऐसा तो बिलकुल भी नही । ये काफी बडा था और इसके पैर या कहो कि इसके पंजे नुकीले और धारदार थे । ये अगर किसी पर हमला कर दे तो बहुत नुकसान कर सकता था पर होटल के एक लडके ने बडे ही प्यार से इसे पकडा हुआ था । उसने बताया कि इसका एक पैर टूट गया है इसलिये ये पकडा गया । अब इसका क्या होगा ? मेरे ये पूछने पर उसने बताया कि खाया जायेगा आप कहिये तो आपके लिये तैयार कर दूं ? मैने कहा तौबा हमारे तो सारे के सारे घास फूस वाले हैं अपनी दाल रोटी ही ला दो हम वही खा लेगें
रात को सोने से पहले हमने अपने अपने कपडे धोये । चूंकि हम लोग दो तीन जोडी ही कपडे लाये थे और यहां पर हमने कपडे इसलिये धोये क्योंकि हमें पता था कि हम कम से कम दो दिन तो हर हालत में रूकने वाले हैं । रात को काफी तेज हवा थी और मैने तो बालकनी में कपडे सुखा दिये । रात को वे सूख भी गये और उड भी गये । सुबह जाट देवता सबेरे उठे और कपडे उठा लाये ।
हम सुबह सवेरे नहा धोकर तैयार हुऐ और होटल से बाहर आ गये । होटल वाले के बताये गये समय पर ही बस आ गयी । बस में डिगलीपुर तक का टिकट केवल 14 रूपये का था और लगभग एक घंटे में हम डिगलीपुर पहुंच गये । हम काफी सवेरे आ गये थे और यहां आकर पता चला कि 9 बजे से पहले तो आफिस नही खुलेगा ।
कल से कोहराम था कि सुबह सवेरे ही लाइन में लग जाना है इसलिये हम इतने सवेरे आ गये थे । अब आ गये तो समय तो बिताना ही था । यहां पर तो एक वृद्धा और एक कुत्ता ही आये थे । पहले हम मार्किट की ओर को चले गये । वहां पर नारियल पानी पिया और साथ में मलाई चबाई गयी । उसके बाद मै फोटोस्टेट कराने चला गया । एक किताब की दुकान खुली ही थी और उस पर जो लडकी झाडू लगा रही थी उसने मुझे फोटोस्टेट करके दे दी । यहीं पर एक चाय की दुकान पर बाइक फार हायर का बोर्ड लगा देखा तो उससे पूछताछ की तो पता चला कि वो किराये पर बाइक देते हैं । 300 रूपये प्रति दिन के लिये ।
ये एक नयी जानकारी थी जो अब तक किसी ब्लाग में मैने नही पढी थी । बाइक का डिगलीपुर में क्या इस्तेमाल हो सकता है । यहां पर ये केवल एक ही दुकान थी ऐसा क्यों ? क्योंकि एक तो डिगलीपुर से बाइक लेकर कोई पोर्ट ब्लेयर तक जाना चाहे तो नही जा सकता क्योंकि बारातांग से आगे जाने नही देंगें । दूसरी बात यहां पर सैडल पीक है उसपे तो बाइक जायेगी नही । कालीपुर और डिगलीपुर तो पैदल ही घूम सकते हो तो फिर बाइक का क्या इस्तेमाल हो सकता है । ये जबाब हमें मिला कल रात होटल के रिसेप्शन पर लगे पोस्टर से ।
मैने जो बारातांग वाला मड वालकिनो छोड दिया था वो इसलिये कि अगर मौका मिला तो डिगलीपुर वाला देखने जायेंगें जो कि बारातांग वाले से बडा है । इसके अलावा यहां पर डिगलीपुर में भी लाइमस्टोन केव हैं जो कि एक दो नही पूरी 41 हैं और उनमें से कुछ जमीन के अंदर हैं । हालांकि उन गुफा समूहो में से केवल एक या दो में ही जाया जा सकता है वो भी घिसट घिसट कर पर अगर कोई देखना चाहे तो जाना होगा उसके लिये काफी दूर ।
डिगलीपुर से एक दिशा में 20 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर मड वोलकिनो है तो ऐसे ही दूसरी दिशा में लगभग इतनी ही दूर चलकर और फिर स्पीड बोट से जाकर अल्फ्रेड गुफाऐं आयेंगी । तो हम बाइक का इस्तेमाल श्याम नगर तक जाने में कर सकते हैं । इससे हम यहां के गांवो और जनजीवन को अपने हिसाब और अपनी मर्जी से देख सकते हैं । प्लानिंग बन चुकी थी और केवल टिकट खिडकी खुलने का इंतजार था ।
प्लान ये था कि आज टिकट लेते ही हम दो बाइक लेकर श्यामनगर जायेंगें । मड वोलकिनो देखेंगे और श्यामनगर बीच देखेंगें । शाम को वापस होटल में और कल सुबह सुबह सैडल पीक की चढाई करेंगें और कल शाम को ही रंगत पहुंच जायेंगें । परसो सुबह की जेटटी से हैवलाक क्योंकि परसो हमारा हैवलाक में कमरा बुक है ।
टिकट खिडकी पर लाइन वाले कुछ लोग आ गये थे और संख्या दस तक जा पहुंची थी । जैसे ही दफतर खुला तो कम्पयूटर पर एक मैडम आकर बैठ गयी । इतनी देर में यहां के लोेकल लोगो से बातचीत में पता चला कि पोर्ट ब्लेयर और रंगत , हैवलाक , डिगलीपुर इनके ये टिकटघर आपस में जुडे हैं और कहीं से कहीं का भी टिकट करा सकते हैं । नील के बारे में पता चला कि नील में कम्पयूटरीकृत आफिस नही होने के कारण वहां का टिकट वहीं जाकर लेना होगा ।
मैडम ने आते ही फार्म बांट दिये । इन फार्म में अपनी नाम पते और नम्बर के अलावा अपने सहयात्रियो की डिटेल भरकर देनी थी। साथ में अपने हर यात्री की आई डी लगानी थी । पोथा सा भरकर जब मैडम को दिया तो उन्होने पहले अंदर से घुस आये एक व्यक्ति की टिकट बनानी शुरू कर दी थी । मतलब यहां भी भाई भतीजावाद , पहचान चलती है । हमें लाइन में लगे लगे ये पता था कि ऐसा भी होता है कि तीनो जगह से आज ही एकदम से टिकट बुक होंगी क्येांकि परसो शनिवार था और तब से बंद तीनो जगह के आफिस आज ही खुलेंगें और आज जो टिकट मिलेंगी वो परसो यानि बुधवार की मिलेंगी । यदि किसी वजह से हमारे हाथ परसो की नही लगी तो हमें बृहस्पतिवार तक यहीं समय बिताना होगा और हमारा आगे का शैडयूल बिगड जायेगा ।
जब हमारा नम्बर आया तो हमने मैडम से कहा कि हमें रंगत से हैवलाक जाना है तो उसने देखकर बताया कि कोई जेटटी नही है । हमारे तो होश फाख्ता अब क्या होगा ? प्लान बी लगाया कि मैडम एरियल बे से पोर्ट ब्लेयर की ही दे दो तो उसने बताया कि वो भी नही है और खराब मौसम के चलते ये कैंसिल हैं । अब कोई प्लान नही था ।
बस एक ही तरीका था बस से जाने का तो क्यों ना आगे का काम तो पक्का किया जाये ये सोचकर हमने मैडम से कहा कि हमारा पोर्ट ब्लेयर से हैवलाक का टिकट हो जायेगा क्या ? मैडम ने हां भर दी तो हमने पूछा कि हैवलाक से नील का तो उन्होने उस पर भी हां कर दी । हमने दोनो फार्म में भरकर दे दिया । यानि अब हमें यहां से पोर्ट ब्लेयर बस से जाना होगा और वहां से फेरी में हैवलाक तो हमें कल ही पोर्ट ब्लेयर के लिये चलना होगा । नील से पोर्ट ब्लेयर वापसी का टिकट वहीं से होगा ।
टिकट कराकर हम बाहर निकले और पास की खिडकी पर बस के लिये पूछा । जब हम यहां पर सुबह आये तो कोई नही था और बस की बुकिंग करने वाले महोदय से हमने खूब पूछताछ की थी और हमें आराम से बस मिल जाती पर अब जब हम गये तो सब बस फुल हो चुकी थी । किसी ने बताया कि प्राइवेट बस भी चलती हैं और उनकी टिकट बस अडडे से मिलेंगी । हम लोकल बस में तो इतना लम्बा सफर दोबारा नही करना चाहते थे तो हम बस अडडे की ओर चले और वहां जाकर एक दुकान पर बस के बारे में पूछा । उसने बताया कि बस तो है पर एक ही सीट है तो फिर कैसे होगा तो उसने बताया कि पास की दुकान में एसी बस की बुकिंग होती है वहां से देख लो । हम पास की दुकान पर गये तो उसने बताया कि बस तीन टिकट बची हैं और वो भी सबसे लास्ट पंक्ति की । मरता क्या ना करता हमने तीनो सीटे बुक करायी और वापस बुद्धू बनकर होटल की ओर चल पडे ।
इसका टाइम तो आ गया |
आईये यातायात पुलिस में आपका स्वागत है |
अंडमान की मलाई तो खा लें |
ये वृद्धा और कुत्ता ही थे बस यहां पर |
गजब , गंगा बार |
COMMENTS